कविता

कुछ चेहरों को सच दिखाने पर,
लोगों की आईने से लड़ाई हुई है ।

दरिया में डूब जाने पर मेरे,
शहरों में महफिल सजाई हुई है ।

संभल कर रास्तों पर कदम रखना,
बारुद जमाने ने शिद्दत से बिछाई हुई है ।

जिंदगी तो है बस जन्म से मृत्यु ही,
जन्नत की अफवाह वैसे ही फैलाई हुई है ।

खिलौने गुम हो गए भागते भागते,
जिंदगी बस खेल के लिए बनाई हुई है ।

उम्र पर बंदिशें मत लगाइए साहब,
सुना है बच्चे की अर्थी सजाई हुई है ।
                              .....कमलेश.....

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