मैं

मैं वह नहीं,
जिसके साथ तुम
बाँट सको अपने ग़म,
जिसको दिखा दो तुम गुज़रे हुए पल ।
मैं वह भी नहीं,
जिससे तुम :
उम्मीद रखो कि मैं तुम्हारी उम्मीदें पूरी करुंगा,
जिस पर तुम्हें गर्व हो और तुम कहो कि
मैं तुम्हारा फलाना लगता हूँ ।

मैं वह हूँ ही नहीं,
जिसको तुम समझा पाओ
तुम्हारे जीने के तरीके,
जिसे मना सको तुम
एक दफा रुठ जाने के बाद ।
मैं वह भी नहीं,
तुम कह दो जिसे
अपने दिल का हाल,
माँगने का हक हो तुम्हें दो पल का साथ ।

मैं कदाचित् वह नहीं,
जिसकी आजादी छीनकर तुम
यह सोचने लगो कि,
तुम कतर चूके हो पंख मेरे;
याद रखो पंखों को जंग नहीं लगती ।
मैं वह नहीं,
तुम बिठा सको जिसे
अपने खुशरंग जीवन में,
जिसे सुना सको तुम
दुनिया भर के किस्से ।
 
जो तुम्हारी भाषा नहीं बोलता
जो तुम्हारे दिमाग नहीं पढ़ता,
जो तुमसे एक निश्चित दूरी पर रहता है,
जो तुम्हें देखता ही नहीं,
सिर्फ और सिर्फ वह ही हूँ मैं
केवल मैं ।
                       .....कमलेश.....

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