कुछ तुमने कुछ मैंने ...

दर्द के किस्से सुनाए कुछ तुमने कुछ मैंने,
फिर सिसकियाँ सुनी कुछ तुमने कुछ मैंने ।

सारी तकलीफों की नुमाइशें करते करते,
कई आँसू भी गिराए कुछ तुमने कुछ मैंने ।

देखा जब ज़ख्मों का लबादा इक दूजे पर,
तब मरहम भी लगाया कुछ तुमने कुछ मैंने ।

दूरियों का ज़हर पीते रहे इतने वक्त से हम,
रात भर अमृत ही पीया कुछ तुमने कुछ मैंने ।

लरज़ते होंठो पर सुखा पड़ा जब लफ्जों का,
तब प्रेम को बरसाया कुछ तुमने कुछ मैंने ।

जिस्मों की आरजू के अनायास मिट जाने पर,
रुह को ढूंढने की कोशिश की कुछ तुमने कुछ मैंने ।

बेड़ियों को तोड़ दिया हमने इस मुलाकात में,
परिभाषा बदली इश्क की कुछ तुमने कुछ मैंने ।

जाने कितनी दफ़ा बिखरे इक रात में हम,
लेकिन समेटा खुद को कुछ तुमने कुछ मैंने ।

कितने ही लम्हें बिताए थे मिलकर  हमने,
फिर याद बना लिए कुछ तुमने कुछ मैंने ।।

                                        .....कमलेश.....
                                      

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